ब्रह्मज्ञान एक ऐसी गहन आध्यात्मिक समझ है जो हमारे अस्तित्व के मूल सत्य को उद्घाटित करती है। यह बताता है कि हम केवल शारीरिक सीमाओं से परे हैं, हमारी चेतना अनंत और सर्वव्यापी है। जैसे मिट्टी से घड़ा बनता है, फिर भी मिट्टी अपने मूल स्वरूप में रहती है, उसी प्रकार हमारा अस्तित्व भी विभिन्न रूपों में प्रकट होता है।
ब्लॉग/लेख
माया का ज्ञान
माया शब्द संस्कृत से आया है जिसका अर्थ है “जो नहीं है”। आध्यात्मिक दर्शन में माया का अर्थ है वह भ्रम जो हमें सत्य से दूर रखता है। त्रिज्ञान कार्यक्रम के द्वितीय दिवस में हम इसी माया के विषय में विस्तार से जानते हैं – “जगत क्या है?”
हम सभी मानते हैं कि हमारे चारों ओर की दुनिया वस्तुनिष्ठ है, यानी सभी के लिए एक समान। लेकिन क्या यह सत्य है? या यह मात्र एक भ्रम है? माया की परिवर्तनशीलता, अनित्यता, भ्रामकता और व्यक्तिनिष्ठता को समझकर हम जान सकते हैं कि यह संसार एक दीर्घकालिक सपने जैसा है।
यदि सब कुछ माया है, तो सत्य क्या है? अस्तित्व क्या है? ज्ञान मार्ग हमें बताता है कि सत्य केवल अनुभव और अनुभवकर्ता के मिश्रण में है। इनके मिलन को ही “अस्तित्व” या “ब्रह्म” कहा जाता है, जो एकमात्र सत्य है…
आत्मज्ञान – “मैं कौन हूँ?”
आत्मज्ञान का अर्थ है अपने वास्तविक स्वरूप को जानना। यह जानना कि मेरा तत्व क्या है? वह क्या है जो मुझे परिभाषित करता है और जिसके बिना मैं नहीं रह सकता? “मैं कौन हूँ?” – इस सरल से प्रश्न में गहन आध्यात्मिक खोज छिपी है।
कैवल्याश्रम मेरठ में हम आत्म-अन्वेषण के इस मार्ग पर साधकों का मार्गदर्शन करते हैं। नेति-नेति विधि से हम जानते हैं कि मैं न शरीर हूँ, न मन, न विचार, न भावनाएँ। मैं वह साक्षी चेतना हूँ जो सभी अनुभवों को देखती है, लेकिन स्वयं कभी नहीं बदलती। यह साक्षी अजन्मा, अजर, अमर और आनंदमय है।
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