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ब्रह्मज्ञान: जीवन का परम रहस्य

परिचय: अनुभव की गहराइयों में

क्या आपने कभी सोचा है कि हमारा अस्तित्व केवल शारीरिक सीमाओं से परे है? त्रिज्ञान कार्यक्रम के तीसरे दिन हम ब्रह्मज्ञान की उस गहन यात्रा पर चलेंगे, जो हमारी चेतना के मूल स्वरूप को समझने का प्रयास करती है।

ब्रह्मज्ञान: मूल अवधारणा

अनुभव और अनुभव कर्ता: एक अभिन्न संबंध

ब्रह्मज्ञान की मूल समझ इस बात पर केंद्रित है कि:

  • अनुभव और अनुभव करने वाला एक ही है
  • बाहरी परिवर्तन केवल रूप में होते हैं, सार नहीं बदलता

मिट्टी और घड़े का उदाहरण

जैसे मिट्टी से घड़ा बनता है, फिर भी मिट्टी अपने मूल स्वरूप में ही रहती है, उसी प्रकार हमारा अस्तित्व भी विभिन्न रूपों में प्रकट होता है, लेकिन उसका मूल सार अपरिवर्तनीय रहता है।

दूरी का भ्रम

शरीर और चेतना के बीच की दूरी

हम अक्सर सोचते हैं कि:

  • हम शरीर हैं
  • चीजें हमसे दूर हैं
  • अनुभव और अनुभव कर्ता अलग-अलग हैं

लेकिन ब्रह्मज्ञान कहता है – यह सब एक भ्रम है!

चेतना का सार: अनंत और सर्वव्यापी

आकाश का उदाहरण

जैसे आकाश सर्वव्यापी है और हर वस्तु को अपने में समाहित करता है, उसी प्रकार हमारी चेतना भी:

  • सबको धारण करती है
  • किसी सीमा से बंधी नहीं है
  • हर अनुभव का आधार है

जीवन में ब्रह्मज्ञान का अनुप्रयोग

साक्षी भाव: जीवन का सरल मार्ग

ब्रह्मज्ञान के अनुसार जीवन जीने के लिए:

  • अपने अनुभवों का साक्षी बनें
  • किसी भी परिस्थिति में संतुलन बनाए रखें
  • भय, चिंता और संघर्ष से मुक्त रहें

निष्कर्ष: परम सत्य की ओर

ब्रह्मज्ञान हमें सिखाता है कि:

  • हम केवल शरीर नहीं हैं
  • हमारा अस्तित्व अनंत है
  • हर अनुभव एक क्षणिक प्रकटीकरण मात्र है

अंतिम संदेश

याद रखें, ब्रह्मज्ञान एक अनुभव है, जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है, शब्दों में पूरी तरह बयान नहीं किया जा सकता।

“मैं हूँ, जो अनंत अस्तित्व हूँ, जो हर रूप में प्रकट होता है।”

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शून्य बोधिसत्व

कैवल्याश्रम मेरठ के संस्थापक एवं आध्यात्मिक मार्गदर्शक। माँ शून्य के मार्गदर्शन में अद्वैत वेदांत के अनुभवी अध्येता और त्रिज्ञान कार्यक्रम के प्रणेता। साधकों को आत्म-साक्षात्कार का सरल और प्रत्यक्ष मार्ग दिखा रहे हैं। जीवन मंत्र: "स्वयं को जानो, सृष्टि को जानो, ब्रह्म को जानो।

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